१
मस्ती में मचा के धूम, प्रेमियों को चूम-चूम
चारों और घूम घूम, रंग बरसाइए
ऐसी हो तरंग, तन मन में उमंग भरे
होश खो पतंग सम, झूम झूम जाइए
आज सारे संग, पीएँ भंग, नाचे अंग अंग ऐसा मदमस्त रंग, ढंग से जमाइए
होली का मिलन है ये, सारे वैर भूलकर
फाग का अनूठा राग साथ मिल गाइए
२
नज़रों के आर पार, खूब बरसाओ प्यार
रूठों का हो मनुहार, सबको मनाइए
हों विचार नेक, दिल मिल बन जाएँ एक
प्रीत की सितार पर, ऐसे गीत गाइए
हो शृंगार मौसम का, सौरभ के झरनों से
सबको ही दौड़कर, दिल से लगाइए
धरा पे हो ऐसा रंग, देव भी तरस उठें
प्रेम का खजाना सारा, प्रेम से लुटाइए
अरुण मित्तल
१७ मार्च २००८
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