अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

   
 

      
       तन-मन बसंत है

सज धज के धरा खिली
तन-मन बसंत हैं

गेंहूँ की बाल झुकी बहती बयार है
ठिठक ठिठक चाल रुकी मुस्काता प्यार है
भर उमंग अवनी नभ
मुस्काते दंत हैं

सरसों के खेत हँसे पीला कछार है
प्रीतम संग नैन फँसे इठलाती नार है
नैनों में प्यार लिए
मुस्काते कंत हैं

मलयानिल सुमन खिले बौरी अमराई
पीतवर्ण पात हुए अंतिम गति पाई
उन्मादी गंध बहे
खुशियाँ अनंत हैं

गुंजित स्वछंद कुञ्ज छंदमय गीत हैं
सूर्य प्रखर मंगल मुद जीवन संगीत है
मेरु शिखर शांत खड़े  
ध्यान मग्न संत हैं

- सुशील शर्मा
१ मार्च २०२४
   

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter