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 फागुन

रंगों के इंद्र धनुष बिखरे
मौसम ने जब खोली पलकें

बिंदियाँ से पायल तक गोरी
भीगी चूनर भीगी चोली
भीगा अँगना भीगी गलियाँ
मन मदिर मदिर मधु रंगोली

गीतों के फिर आँचल सँवरे
फागुन ने फिर गूँथी अलकें

राधा के अरुण कपोलों से
मधुशाला का गठबंधन है
मन की छोटी सी बस्ती का
कोना-कोना वृन्दावन है

पनघट है यमुना का जल है
क़िस्से रस के छलकें छलकें

बादल बिजली धरती अंबर
झूम रहे हैं सब घर बाहर
उत्सव के सम्मोहन में सब
चंदा सूरज नदिया सागर

मधु कलश छलकते छंदों के
केसर पलाश जैसे ढलकें

- रंजना गुप्ता
१ मार्च २०२४
   

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