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      रंग डारो नहीं

रंग डारो नहीं मोपे ओ साँवरे
मैं तो हो जाऊँगी बाँवरी
रंग डारो नहीं

बाँसुरी की मधुर तान सुन के
मोर के पंखों से रंग चुन के
लाल पीले हरे, मोतियों से भरे
लाई, मुझ पे न बरसाव रे
रंग डारो नहीं

श्याम रंग में तेरे रंग जाऊँ
गीत तेरे ही कान्हा मैं गाऊँ
बंसीवट के तले, बातें फिर जो चले
छेड़ेगा तब मेरा गाँव रे
रंग डारो नहीं

जो हो तेरे वही रंग मेरे
नाम ले सब तेरा संग मेरे
चंद्र ओर चन्द्रिका, कृष्ण और राधिका
जैसे हो इक नदी नाव रे
रंग डारो नहीं

डॉ. नितीन उपाध्ये
१ मार्च २०२४
   

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