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       फागुन में

जली होलिका फागुन में
तन भीगे मन भीगे
फागुन में

फगुनौट की हवा बह रही
कानों में मिठियास भर रही
रंग- गुलाल रस बरसे
फागुन में

सज -धज कर घर से निकले
बड़े-बड़े मगरूर
गलबाँही दे हर्षित मिलते
मिल - मालिक मजदूर
ऊँच-नीच की मिटी खाइयाँ
फागुन में

पाहुन आए फगवा लाए
सलहज ने मुँह मिठलाए
जेठ कहे भाभी
फागुन में
 

होली होली की धुन गूँजी
सुहागिलों ने होली पूजी
अर्घ्य चढ़ाया नमन किया
फागुन में

शीत हुआ भयभीत
कुहर के पाँव थके
मंजरियों ने आँखें खोलीं
अनत पलाश बिके
जली होलिका
फागुन में

नई फसल का दाना आया
सब ने मिल कर गाना गाया
जौ की बालें भूनी
फागुन में

मनोहर अभय
१ मार्च २०२४

   

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