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       रंग सारे धरा पर

स्नेह के भाव मन में मचलने लगे
रंग सारे धरा पर उतरने लगे

जब समय पर्व होली लिए आ गया
तो कदम भी स्वयं ही बहकने लगे

भूलकर भी नहीं दूर जाना कहीं
देखिए फागुनी पुष्प खिलने लगे

प्रीति के शब्द कुछ गुनगुनाते हुए
देख दर्पण स्वयं सब सँवरने लगे

रंग भीगे बदन पर सुहाते बहुत
बात मन की नयन खूब कहने लगे

मुठ्ठियों में भरे रंग बढ़ते कदम
स्नेह के आज अंदाज दिखने लगे

दिन उदासी भरे हो गये खत्म हैं
रूप सुन्दर सभी के निखरने लगे

- सुरेन्द्रपाल वैद्य
१ मार्च २०२४
   

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