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        फागुनी हवाएँ

रूप धरती का सजाएँ
फागुनी मादक हवाएँ

सूर्य की किरणें नहाकर
सुनहरी चुनरी उढ़ाकर
कोपलों के रंग सँवारें
फूल उनके पग पखारें
रंग से पूरित दिशाएँ
और भँवरे फाग गाएँ

वैर के मन को मिटाकर
और तम से दूर आकर
प्रेम की इक डोर बाँधें
पुराना सबकुछ भुलाकर
नेह के फिर गीत गाएँ
कोयलें भी सुर मिलाएँ

- स्मृति गुप्ता 
१ मार्च २०२३
   

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