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        रंग की मस्ती में

हर दिल में बसता है फागुन

मुस्कान बिखरती मुखड़ों पर
क्षिति पाठ प्रेम का पढ़ती जब
भाव एक हो जाते मिलकर
होली समरसता गढ़ती जब
नेह की बस्ती में
रंग की मस्ती में
जन-जन को कसता है फागुन

पुलकित नभ गाता प्रणय-गीत
गाती है संसृति ठुमरी जब,
आँखों में उगते इन्द्रधनुष
पल प्रति पल लगते मिसरी जब
जगत अलमस्ती में
भंग की कश्ती में
झूम-झूम हँसता है फागुन

- डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर
१ मार्च २०२३
   

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