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       दिन मधुमास के

दिन आ रहे मधुमास के 

शीत है भयभीत
खुशनुमा वातावरण 
पहन रही हरितमा 
पीतवर्णी आभरण 
कह गई कोकिला 
कान में कुहास के 
दिन आ रहे मधुमास के

गुनगुनी सी धूप होगी
मधुभरी  औ'  सुनहरी
मंजीरे बजाने आ रही 
मधुमती सी मधुकरी 
मकरंद ले कर झूमते
झोंके- झुके सुवास के

तितलियों से भर गईं
क्यारियाँ फुलवारियाँ
कलियाँ सियानी मारती
रस- गंध की पिचकारियाँ 
ढपली बजाते मधुप चंचल 
फागुनी उल्लास के

अब जलेंगी  अवदमन की 
राजपथ पर   होलियाँ 
आग   लेकर आ गईं 
हुरियारिओं की टोलियाँ 
फूल महकेंगे
केसर - पलाश -  के

- डॉ. मनोहर अभय 
१ मार्च २०२३
   

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