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        फागुन का गीत

फागुन के दिन आए सखी री
आम हुए बौराए सखी री

रातें नरम, दोपहर गरम हैं
दिन आये अलसाए सखी री

चहकी धरा, महक गए उपवन
भौंरा गुन गुन गाए सखी री

चाँद, बुरक्ले, पान, जीभ सब
गोबर थाप बनाए सखी री

उड़त गुलाल अबीर चहुँदिश
रंग रहे बरसाए सखी री

गा रे फाग पिया परदेसी
मनवा उड़ उड़ जाए सखी री

- अलकेश त्यागी
१ मार्च २०२३
   

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