अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

   
 

      
      यह अनुपम त्यौहार

रंगों में तरुणाभ है, और छुपी मनुहार
रिश्तों को दे ताजगी, यह अनुपम त्यौहार

रंगों में सद्भावना, रंगों में मुस्कान
लगता है प्रभु से मिला, सृष्टि को वरदान

रंगों में अनुराग है, इसमें है विश्वास
रंग दिलों में भर रहे, इक पावन एहसास

रंगों में बंधुत्व की, सोंधी-सोंधी गंध
रंग हृदय से देखते, करके आँखें बंद

रंगों में ही दीखता, जीवन का मधुमास
रंग सभी को जोड़ते,  करें दूर संत्रास

रंगों में सुरताल है, रंगों में संगीत
जैसे कृष्णकन्हाई की, हो राधा से  प्रीत

रंगों में झंकार है, ज्यों वीणा के तार
इसमें  नवदर्शन लगे, औ' गीता का सार

रंगों में किलकारियाँ, हर्षित हर आवाज
रंग बाँधने आ गए, रिश्तों के सिर ताज

- सतीश उपाध्याय
१ मार्च २०२३

   

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter