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      भरा गुलाबी रंग

पिचकारी के हृदय में भरा गुलाबी रंग
थामी जैसे हाथ में खिले जा रहे अंग

एक गाल पर लालिमा एक सज रहा पीत
माथे टपके बूँदियाँ फागुन की ये रीत

साजन से नहीं छुप सकी, सजनी चतुर सुजान
भीगी सिर से पाँव तक, टूटा सारा मान

होली के हुड़दंग में खोई पायल एक
देवर जी को जा मिली माँगे अपना नेग

भाँग अभी तक पी नहीं, अँखें हो गयीं लाल
नशा चढ़ा जो फाग का, दहक रहे हैं गाल

- पूर्णिमा जोशी  
१ मार्च २०२३

   

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