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         आया फागुन

आया फागुन बज उठे ढोलक ढोल मृदंग
मन जैसे सागर हुआ धड़कन हुई तरंग

रस की इस बौछार में घुलें न कपट कुढंग
रिश्तों को निगले नहीं कहीं जलन की जंग

इठलाएँ अठखेलियाँ मचलें मौन उमंग
साँसों में सजते रहें अरमानों के रंग

टूटी कड़ियाँ जोड़ लें और बढ़ें सब संग
बेगानों को भी चलें आज लगा लें अंग

बाहों के घेरे अगर हुए न अब भी तंग
फिर कैसा किसके लिये होली का हुड़दंग

- मदन मोहन अरविन्द
१ मार्च २०२३

   

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