अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

वासंती मनुहार

वासंती मनुहार लिये है झोंका मस्त बहार का
मन की खोल किवड़िया गोरी
आया मौसम प्यार का

दूर तलक सरसों के फूलों का है बिछा बिछौना
महक रहा है चहक रहा है धरती का कोना कोना
नव उमंग से भरा हुआ है
जड़ चेतन संसार का

जीव जगत के आतुर हैं लिखने को प्रेम कहानी
मन को मार कहाँ तू बैठी सुन ओ सुमुख सयानी
सपनों को री पंख लगा ले
समझ इशारा यार का

कच्चे पक्के रंगों से भर ले जीवन की झोली
हँसी खुशी फगुना में सजना के संग खेलो होली
रंगों के बिन जीवन जैसे
उपवन बिना बहार का

- रमेश प्रसाद सारस्वत
१ मार्च २०१८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter