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फगुआ थोड़े रंग लगा दे

फगुआ थोड़े रंग लगा दे
इच्छाओं के गाल पर

चलते-चलते रीत रही हैं
देखो, असमय बीत रही हैं
कातर नयनों से तकतीं अब
ये बसंत की
थाल पर

कहतीं, भाने लगा किनारा
सुन रो देता मन बेचारा
पिचकारी यौवन की रोये
कब तक अपने
हाल पर!

प्रणय गुलालों से मुस्काए
बरस न अबकी खाली जाए
जीवन झूम उठे मदमाता
प्रीत भ्रमर के
ताल पर

- कुमार गौरव अजीतेन्दु
१ मार्च २०१८

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