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होली आ गयी है

फागुनी मन, ऋतु बसन्ती
रंग का त्यौहार होली आ गयी है

है नशीली गंध इस मादक पवन में
कुहुक कोयल की चहकती आम्र-वन में
टूटती अँगड़ाइयाँ लेकर खुमारी
प्यार की,मनुहार की लेकर दुधारी
कसमसाती, है लजाती रंग की बौछार
होली आ गयी है

फिर पुराने पेड़ पर कोंपल उगी है
फिर बुढापे में जवानी सी जगी है
खोजते देवर-ननद भौजाइयों को
प्राण में बजती हुई शहनाइयों को
आज तन-मन को कोई बंधन नहीं स्वीकार
होली आ गयी है

अब इशारे भी बदन को गुदगुदाते
अंग पाने को छुअन हैं कुलबुलाते
रंग और गुलाल मस्ती फेंकते है
कनखियों से देह के देते पते है
हो रही है नयन से पिचकारियों-सी मार
होली आ गयी है

मत बुरा अब मानिये त्यौहार है यह
द्वेष-कटुता भूलने का प्यार है यह
गले मिलिए रंग और गुलाल लेकर
भूलिये सारी शिकायत प्यार देकर
गले मिलकर कीजिये त्यौहार को साकार
होली आ गयी है

जो हुई,हो ली उसे अब भूल जाओ
रंग डालो, मस्त हो खुशियाँ मनाओ
छोडिए अब तक हुई, जो हुई, हो ली
मस्त मौसम कर रहा आकर ठिठोली
आइये मिलकर रखें सुखमय सभी व्यवहार
होली आ गयी है

- जगदीश पंकज
१ मार्च २०१८

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