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दूकान किराने की

मन में ही मर गयी लालसा होली में घर जाने की
भोलू जहाँ नौकरी करता
वह दूकान किराने की

जब नन्हे नन्हें हाथों से थैली भरता मैदा की
खूब महक आतीहै उसको उस मैदे से गुझिया की,
दस दस किलो खरीद रहे सब भोलू मन में सोच रहा
आखिर कैसे बनती होगी
कचरी साबूदाने की

गर्री के गोलों का बोरा खोज रहा अलमारी में
उसके बस में नहीं रहा है दिल अटका पिचकारी में
घी ग्राहक माँगे तब उठकर बिस्कुट लेकर आता है
कोई फिक्र नहीं है उसको
मालिक के गुर्राने की

बच्चा है पर छुप छुप रोकर गाल कर लिए गीले हैं
रंग गुलाल तोल कर उसके हाथ हुये रंगीले हैं
ज्योहीं आँसू पोंछे अपने रंग लग गया गालों पर
ऐसे मन जाती है होली
होली के दीवाने की

- ज्ञान प्रकाश आकुल
१ मार्च २०१८

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