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उड़े अबीर गुलाल

धरती - अंबर हो गए, देखो लालम लाल
मदहोशी के रंग में, उड़े अबीर - गुलाल

ऊँच - नीच के भेद को, करती होली दूर
गले लगाती सभी को, समरसता का नूर

रंगों में सब रंग के, हुए सभी बदरंग
रिश्ते-नाते भूलकर, सभी करें हुड़दंग

प्रीत पगे ई-मेल ने, कैसा किया कमाल
मन की दुनिया हो गयी, लालम लाल गुलाल

जब - जब लाली को लखे, चहके टेसू फूल
लाल लाल लाली हुयी, सुध बुध अपनी भूल

फागुन फिर से आ गया, ले मदमस्त बयार
टेसू, महुआ महकते, गजल, गीत के द्वार

- मंजु गुप्ता
१ मार्च २०१८

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