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होली है!!

 

गुलाल के छींटे
(पाँच क्षणिकाएँ)



गुलाल के छींटें
जो बिखेरे थे कभी राहों में
मेरा फागुन
आज भी महका जाते हैं
छूते हैं हौले से मुझे
मन चन्दन हो जाता है ।


प्रेम की उस
पहली होली में
तुमने चुपके से
डाला था बालों में रंग
आज भी जब भीगते हैं गेसू
पानी गुलाबी हो जाता है


रंग तुम्हारे
चुपचाप मेरे जीवन में
चले आते हैं,
बेनूर चूनर पर
बरस
मुझ में समा जाते हैं
मै सतरंगी हो जाती हूँ


रंग पर चढ़ कर
शब्द तुम्हारे
गलियारे में उधम मचाते हैं ,
रात ड्योढ़ी पर
औंधे मुँह सो जाते हैं
फींके सपने मेरे
इन्द्रधनुषी हो जाते हैं


बचा सबकी नज़र
मुझ पर फेंका
प्रेम- रंग
उसका अभ्रक
चुभता है आज भी आँखों में
हर होली आँखें बरस जाती हैं

रचना श्रीवास्तव
२१ मार्च २०११

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