| राष्ट्रभाषा स्वागत करती हिंदी सबका, बिखरा कुंकुम रोलीधरती-जाई भाषा अपनी, जननी, अपनी बोली
 हिंदी यही, जय हिंद यही हैप्रेम-पुजारिन हिंदी
 इसके एक नयन में गंगा
 दूजे में कालिंदी
 अंतर्धारा के संगम पर, इसने मिसरी घोली
 धरती-जाई भाषा अपनी, जननी, अपनी बोली।
 तुलसी, मीरा ज्योति नयन कीदास कबीरा ज्वाला
 जिसको गुन लेता सूरा भी
 उसका ठाठ निराला
 देवी के मंदिर द्वारे पर रचना है रंगोली
 धरती-जाई भाषा अपनी, जननी, अपनी बोली।
 इसका स्वाद प्रसाद बहुत हैजनभाषा रसवंती
 ऋतुओं में वासंती है यह
 रागों में मधुवंती
 भाषाएँ हों चाहे जितनी, यह सबकी हमजोली
 धरती-जाई भाषा अपनी, जननी, अपनी बोली।
 हिंसा से जलती दुनिया मेंहिंदी अमृत-वाणी
 तोड़ेगी क्यों, जोड़ेगी यह
 सबकी रामकहानी
 मिट्टी में मिल जाएँ न सपने, यह है उनकी झोली
 धरती-जाई भाषा अपनी, जननी, अपनी बोली।
 -वीरेंद्र मिश्र16 सितंबर 2006
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