| हिंदी दिवस हम सब हिंदी दिवस तो मना रहे हैं ज़रा सोचें किस बात पर इतरा रहें हैं?
 हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा तो है
 हिंदी सरल-सरस भी है
 वैज्ञानिक और तर्क संगत भी है।
 फिर भी. . .
 अपने ही देश में
 अपने ही लोगों के द्वारा
 उपेक्षित और त्यक्त है
 ज़रा सोचकर देखिएहम में से कितने लोग
 हिंदी को अपनी मानते हैं?
 कितने लोग सही हिंदी जानते हैं?
 अधिकतर तो. . .
 विदेशी भाषा का ही
 लोहा मानते हैं।
 अपनी भाषा को उन्नति
 का मूल मानते हैं?
 कितने लोग हिंदी को
 पहचानते हैं?
 भाषा तो कोई भी बुरी नहींकिंतु हम अपनी भाषा से
 परहेज़ क्यों मानते हैं?
 अपने ही देश में
 अपनी भाषा की इतनी
 उपेक्षा क्यों हो रही है?
 हमारी अस्मिता कहाँ सो रही है?
 व्यावसायिकता और लालच की
 हद हो रही है।
 इस देश में कोईफ्रेंच सीखता है
 कोई जापानी
 किंतु हिंदी भाषा
 बिल्कुल अनजानी
 विदेशी भाषाएँ सम्मान
 पा रही हैं और
 अपनी भाषा ठुकराई जा रही है।
 मेरे भारत के सपूतों ज़रा तो चेतो।
 अपनी भाषा की ओर से
 यों आँखें ना मीचो।
 अँग्रेज़ी तुम्हारे ज़रूर काम
 आएगी।
 किंतु अपनी भाषा तो
 ममता लुटाएगी।
 इसमें अक्षय कोष है
 प्यार से उठाओ
 इसकी ज्ञान राशि से
 जीवन महकाओ।
 आज यदि कुछ भावना है तो
 राष्ट्रभाषा को अपनाओ।
 शोभा महेंद्रू16 सितंबर 2007
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