मातृभाषा के प्रति


शृंगार है हिंदी

खुसरो के हृदय का उद्गार है हिंदी।
कबीर के दोहों का संसार है हिंदी।।

मीरा के मन की पीर बन गूँजती घर-घर।
सूर के सागर-सा विस्तार है हिंदी।।

जन-जन के मानस में, बस गई गहरे तक।
तुलसी के 'मानस' का विस्तार है हिंदी।।

रहीम का जीवन-अनुभव बोलता इसमें।
रसखान के सुरस की रसधार है हिंदी।।

दादू और रैदास ने गाया है झूमकर।
छू गई है मन के सभी तार है हिंदी।।

'सत्यार्थप्रकाश' बन अँधेरा मिटा दिया।
टंकारा के ऋषि की टंकार है हिंदी।।

गांधी की वाणी बनी भारत जगा दिया।
सुराज के गीतों की ललकार है हिंदी।।

'कामायनी' का 'उर्वशी' का रूप है इसमें
'आँसू' की करुण, सहज जलधार है हिंदी।।

प्रसाद ने हिमाद्रि से ऊँचा उठा दिया।
निराला की 'वीणा' की झंकार है हिंदी।।

पीड़ित की पीर घुल यह 'गोदान' बन गई।
भारत का है गौरव, शृंगार है हिंदी।।

'मधुशाला' की मधुरता इसमें घुली हुई
दिनकर के 'द्वापर' की हुंकार है हिंदी।।

भारत को समझना तो जानिए इसको
दुनिया भर में पा रही विस्तार है हिंदी।।

सब दिलों को जोड़ने का काम कर रही
देश का स्वाभिमान है आधार है हिंदी।।

-रामेश्वर दयाल कांबोज हिमांशु
16 सितंबर 2006

 

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