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    | मातृभाषा 
      के प्रति
 
   
 
 
        
        
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                          | हिंदी के नव प्रकाश में
 
 मैं हिन्दी का पिछला प्यादा, शपथ आज लेता हूँ,
 आजीवन हिन्दी लिखने का दायित्व वहन करता हूँ।
 
 रस घोलूँगा इसमें इतने रस के प्यासे आयेंगे,
 वे भी डूब इस रम्य सुरा मे मेरे साकी बन जायेंगे।
 
 कल-कल करती सुधा बहेगी हर जिह्वा पर हिन्दी की,
 नये नये सैनिक आएँगे सेना मे तब हिन्दी की।
 
 हिन्दी के उस नव-प्रकाश मे फिर राष्ट्र जगमगाएगा,
 माँ भारती की जिह्वा पर अमृतकलश सुहाएगा।
 
 --प्रकाश 
'पंकज'
 १४ सितंबर २०१०
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