| हिंदी-ज्ञान हिंदी ज्ञान,मेरे लिए अमृत रस पान
 जितनी बार उसे पीता हूँ, लगता है
 उतनी बार पुन: जीता हूँ
 हिंदी सुधा-सार मेरे लिएचिंतामणि है बहु बार
 सपने में भी रोम-रोम को
 रोमांचित करती है
 उसकी मधुर धुनों की जय-जयकार
 हिंदी ध्वनि-मेरे लिए पारसमणि है अनमोल
 जितनी बार उसे सुनता हूँ-
 लगता है
 उतनी बार पुन: वृंदावन घूमता हूँ
 मेरे सारे समूचे संस्कारों की निधि
 स्वयं भारत-भूमि
 स्वयं हिंदी
 जिसके बोल
 मेरे लिए आनंद अनमोल
 जिसके गान, इन प्राणों में मोक्ष, वरदान
 मेरे लिए प्रभु राम-सा है जिसका सुमिरणजिस-जिस घड़ी उसकी शरण में जाता हूँ
 उस-उस घड़ी अपने मन-मंदिर में
 लगता है
 सत्यं शिवं सुंदरम पाता हूँ
 
 (चेक गणराज्य के प्रसिद्ध हिंदी विद्वान
स्व. ओदोलेन स्मेकल द्वारा मूल हिंदी में लिखी कविता)
 16 सितंबर 2006
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