| आओ-आओ सुनो कहानी हिन्दी की जय बोलो हिन्दी बिन्दी 
हिन्दुस्तान की
 सबकी भाषा अलग-अलग है, अलग अलग विस्तार है
 भावों की सीमा के भीतर, अलग-अलग संसार है
 सब भाषाओं के फूलों का, इक सालोना हार है
 अलग-अलग वीणा है, लेकिन एक मधुर झंकार है
 भाषाओं में ज्योति जली है, कवियों के बलिदान की
 हिन्दी की जय बोलो हिन्दी भाषा हिन्दुस्तान की
 
 हिन्दी की गौरव गाथा का नया निराला ढंग है
 कहीं वीरता, कहीं भक्ति है, कहीं प्रेम का रंग है
 कभी खनकती हैं तलवारें, बजता कहीं मृदंग है
 कभी प्रेम की रस धारा में, डूबा सारा अंग है
 वीर भक्ति रस की ये गंगा, यमुना है कायान की
 हिन्दी की जय बोलो, हिन्दी भाषा हिन्दुस्तान की
 
 सुनो चंद की हुँकारों को, जगनिक की ललकार को
 सूरदास की गुँजारों को, तुलसी की मनुहार को
 आडम्बर पर सन्त कबीरा की चुभती फटकार को
 गिरिधर की दासी मीरा की, भावभरी रसधार को
 हिन्दी की जय बोलो हिन्दी-बिन्दी हिन्दुस्तान की
 हिन्दी को नमन--हिन्दी को नमन।
 
 भारतेन्दु ने पौधा सींचा महावीर ने खड़ा किया
 अगर गुप्त ने विकसाया तो जयशंकर ने बड़ा किया
 पन्त निराला ने झंडे को मजबूती से खड़ा किया
 और महादेवी ने झंडा दिशा-दिशा मे उड़ा दिया
 गिरिधर की दासी मीरा के सुनी सरस उद्गारों को
 देव बिहारी केशव की कविता है प्रेमाख्यान की
 हिन्दी की ये काव्य कथा है हिन्दी के गुनगान की
 
 हिन्दी की जय बोलो हिन्दी बिन्दी हिन्दुस्तान की
 आओ-आओ सुनो कहानी हिन्दी के उत्थान की।
 
 --प्रो॰ नरेन्द्र पुरोहित
 १४ सितंबर २००९
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