मातृभाषा के प्रति


लंदन में विश्व हिंदी सम्मेलन

उस वर्ष लंदन में,
विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित था,
कुछ लेखन से,
कुछ तिकड़म से, मैं भी आमंत्रित था।

समापन के दिन तक रोज़ कुछ तुक के,
कुछ बेतुके, भाषण सुन-सुन कर मैं थक चुका था,
वक्ताओं का भाषणबाज़ी का राष्ट्रीय शौक,
लंदन पहुँचकर द्विगुणित हो चुका था।

समाप्ति पर लंबी जंभाई लेता हुआ मैं,
बाहर निकला, चाह थी एकांत में विश्रांति की,
अत: चल दिया टेम्स नदी की ओर,
जिधर घटाटोप बादलों से घिरी शाम थी।

लंदन ब्रिज से उतरकर, टेम्स के किनारे
बने पैदल-पथ पर, एक खाली बेंच पर बैठ गया,
निर्जनता के सम्मोहन ने मन मोह लिया,
टेम्स की लहरों का कलकल स्वर हृदय में पैठ गया।

तभी बायीं ओर बेंच पर अकस्मात,
किसी अजनबी की उपस्थिति का भान हुआ,
अचानक वहाँ एक बूढ़े अंग्रेज़ को देखकर,
मन में भय उपजा, मोह का अवसान हुआ।

'कहो कैसा रहा वर्ल्ड हिंडी कान्फरेंस?'
मेरे कुछ बोलने से पहले ही बूढ़ा पूछ बैठा।
मैं अचकचाया, फिर सहज होकर बोला,
'ठीक ही था, मुख्यत: हिंदी की दुर्दशा पर मातम था।'

बूढ़ा ठहाका लगाकर हंसा, फिर बोला,
'मैं जानता था, और कुछ हो ही नहीं सकता,'
असीम जिज्ञासा से भरकर मैंने पूछा,
'सर, आप कैसे जानते थे?'

बूढ़ा गूढ़ मुस्कराहट के साथ बोला,
'टुम हिंडुस्टानी लोग,
हिस्ट्री को न समझते हो और न उससे कुछ सीखते हो।
टुम समझते हो कि,
आज़ाडी पाकर तुम गोरों से आज़ाड हो गए हो?
हमने दो सौ साल पहले अपनी पालिसी से,
हिंडुस्टान में ऐसे काले अंग्रेज़ पैदा कर दिए थे,
जो हिंडुस्टान की किसी भाषा पर न तो गर्व करें,
और न उसे राष्ट्रभाषा का सम्मान दें।
अब भी हम ऐसे हिंडुस्टानी अंग्रेज़ पैदा कर रहे हैं,
जिनका हिंडुस्टान की हर व्यवस्था पर राज रहेगा।
हिंडुस्टान पहले गोरे अंग्रेज़ों का गुलाम था,
अब काले अंग्रेज़ों का रहेगा।'

आत्मसम्मान पर आई चोट से तिलमिलाते हुए
मैंने उस बूढ़े से पूछा, 'बट, हू आर यू?'
तब वह फिर ठहाका लगाकर बोला,
'टुम लार्ड मैकाले को बिना जाने ही हिंडी को प्रतिष्ठित करने आया है?'

यह कहकर वह बूढ़ा,
मेरे पलक झपकाते ही अंतर्धान हो गया।
परंतु लार्ड मैकाले के भूत का अट्टहास,
देर तक टेम्स की लहरों के साथ तैरता रहा

-महेशचंद्र द्विवेदी
16 सितंबर 2005

 

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