| हिंदी जन की बोली है एक डोर में सबको जो है बाँधतीवह हिंदी है,
 हर भाषा को सगी बहन जो मानती
 वह हिंदी है।
 भरी-पूरी हों सभी बोलियाँ
 यही कामना हिंदी है,
 गहरी हो पहचान आपसी
 यही साधना हिंदी है,
 सौत विदेशी रहे न रानी
 यही भावना हिंदी है।
 तत्सम, तद्भव, देश विदेशीसब रंगों को अपनाती,
 जैसे आप बोलना चाहें
 वही मधुर, वह मन भाती,
 नए अर्थ के रूप धारती
 हर प्रदेश की माटी पर,
 'खाली-पीली-बोम-मारती'
 बंबई की चौपाटी पर,
 चौरंगी से चली नवेली
 प्रीति-पियासी हिंदी है,
 बहुत-बहुत तुम हमको लगती
 'भालो-बाशी', हिंदी है।
 उच्च वर्ग की प्रिय अंग्रेज़ीहिंदी जन की बोली है,
 वर्ग-भेद को ख़त्म करेगी
 हिंदी वह हमजोली है,
 सागर में मिलती धाराएँ
 हिंदी सबकी संगम है,
 शब्द, नाद, लिपि से भी आगे
 एक भरोसा अनुपम है,
 गंगा कावेरी की धारा
 साथ मिलाती हिंदी है,
 पूरब-पश्चिम/ कमल-पंखुरी
 सेतु बनाती हिंदी है।
 -गिरिजा कुमार माथुर16 सितंबर 2006
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