| हिंदी में बोलूँ जो सोचूँ हिंदी में सोचूँजब बोलूँ हिंदी में बोलूँ
 जन्म मिला हिंदी के घर में,हिंदी दृश्य-अदृश्य दिखाए।
 जैसे माँ अपने बच्चे को,
 अग-जग की पहचान कराए।
 ओझल-ओझल भीतर का सच,
 जब खोलूँ हिंदी में खोलूँ।।
 निपट मूढ़ हूँ पर हिंदी ने,मुझसे नए गीत रचवाए।
 जैसे स्वयं शारदा माता,
 गूँगे से गायन करवाए।
 आत्मा के आँसू का अमृत,
 जब घोलूँ हिंदी में घोलूँ।।
 शब्दों की दुनिया में मैंने,हिंदी के बल अलख जगाए।
 जैसे दीपशिखा के बिरवे
 कोई ठंडी रात बिताए।
 जो कुछ हूँ हिंदी से हूँ मैं,
 जो हो लूँ हिंदी से हो लूँ।।
 हिंदी सहज क्रांति की भाषा,यह विप्लव की अकथ कहानी।
 मैकाले पर भारतेंदु की
 अमर विजय की अमिट निशानी।
 शेष गुलामी के दाग़ों को,
 फिर धो लूँ हिंदी से धो लूँ।।
 हिंदी के घर फिर-फिर जन्मूँजन्मों का क्रम चलता जाए,
 हिंदी का इतना ऋण मुझ पर
 साँसों-साँसों चुकता जाए
 जब जागूँ हिंदी में जागूँ
 जब सो लूँ हिंदी में सो लूँ।।
 -डॉ. तारा प्रकाश जोशी16 सितंबर 2005
 
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