| भाल की शृंगार 
                          माँ भारती के भाल की शृंगार है हिंदीहिंदोस्ताँ के बाग़ की बहार है हिंदी
 घुट्टी के साथ घोल के माँ ने पिलाई थीस्वर फूट पड़ रहा, वही मल्हार है हिंदी
 तुलसी, कबीर, सूर औ' रसखान के लिएब्रह्मा के कमंडल से बही धार है हिंदी
 सिद्धांतों की बात से न होयगा भलाअपनाएँगे न रोज़ के व्यवहार में हिंदी
 कश्ती फँसेगी जब कभी तूफ़ानी भँवर मेंउस दिन करेगी पार, वो पतवार है हिंदी
 माना कि रख दिया है संविधान में मगरपन्नों के बीच आज तार-तार है हिंदी
 सुन कर के तेरी आह 'व्योम' थरथरा रहावक्त आने पर बन जाएगी तलवार ये हिंदी
 -डॉ जगदीश व्योम16 सितंबर 2005
 
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