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				हिन्दी मधुरम 
				भाषा 
				 
				विश्व फलक पर चमक रही है 
				हिंदी मधुरम भाषा  
				कोटि कोटि जन के नैनों की  
				सुफल हुई अभिलाषा  
				 
				तितली बनकर गगन चूमती  
				बागिया में वह खिलती  
				सखी- सहेली के संग -संग  
				गले सभी के मिलती  
				पुष्पित होती, हँसते गाते  
				मन की कोमल आशा ।  
				 
				फूल झरे दिन रात हृदय में  
				यह सूफी मुस्काई  
				तुलसी के अँगना में उतरी  
				बन दोहा -चौपाई  
				झूल प्रकृति के पलने में  
				प्रतिदिन, गढ़ती परिभाषा।  
				 
				गागर में सागर भरती  
				हिंदी का रसपान करें 
				निज भाषा अपनी है, हम  
				हिंदी का सम्मान करें  
				एक सूत्र में सबको बाँधे  
				हिंदी देशज भाषा।  
				 
				- शशि पुरवार   
				१ सितंबर २०१५
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