शीत लहर
है देश में प्रीत पिया परदेश
यादें बैठी धूप में खोले अपने केश
कल फिर आधी
रात को आई उसकी याद।
मन पागल करता रहा खुद से खुद संवाद
कुछ चुप्पी
कुछ बोलना कुछ अनबन कुछ प्यार
खोल पिटारी याद की प्रीत करे सिंगार।
सूखे
पत्तों-सा जला बरगद तले अलाव
लगे सुलगने आज फिर मन के गीले घाव।
पता धुला
बरसात में भूल गयी निज धाम
दिशाहीन उड़ती रही इक चिठ्ठी गुमनाम
चौरस्ते के
बीच में ठिठके बोझिल पाँव
ना जाने किस ओर है निर्मोही का गाँव
हमने तो हर
शब्द में ढाली अपनी प्रीत
दुनिया को उसमें दिखीं कविता गज़लें गीत
-शारदा
मिश्रा |