शरद का
सुन्दर नीला आकाश
निशा निखरी था निर्मल हास
बह रही
छाया पथ में स्वच्छ
सुधा सरिता लेती उच्छवास।
पुलक कर
लगी देखने धरा
प्रकृति भी सकी न आँखे मूँद
सुशीतलकारी शशि आया
सुधा की मनो बडी-सी बूँद।
हरित
किसलय कोमल वृक्ष
झुक रहा जिसका पाकर भार
उसी पर
रे मतवाले मधुप!
बैठकर करता तू गुंजार!
न आशा कर
तू अरे! अधीर
कुसुम रज रस ले लूँगा गूँद
फूल है
नन्हा सा नादान
भरा मकरन्द एक ही बूँद।
- जय
शंकर प्रसाद
(झरना
से) |