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गाँव में अलाव
जाड़े की कविताओं को संकलन

गाँव में अलाव संकलन

जाडे में गाँव

सरेशाम ही चुप हुए, अलसाये-से गाँव।
कोहरे की चादर तनी, बढ़े धुएँ के पाँव।।

आँगन में गिरने लगे, चमकीले हिम-फूल।
झोंपड़ियाँ सहमी खड़ी, डाले तम की झूल।।

घर-बाहर के काम कर, पायल पहुँची सेज।
बाहों से कंगन कहे, आँचल तनिक सहेज।।

घुटनों से दाढ़ी मिली, सिकुड़-सिमटे गात।
काली कमरी ओढ़कर, जगी शिशिर की रात।।

पाँच-सात मिल तापते, सुलगे, दबे अलाव।
बातों की लपटें उठीं, झुलसे सभी अभाव।।

कल पानी लगना कहाँ, कौन निराये खेत।
किसे ब्लाक में जूझना, कागज-पत्र समेत।।

पछलहरा पानी भरे, झीनी चुनर साथ।
भोरहरी तकने लगी, जगमग पूरब-माथ।।

छप-छप करतीं बेड़ियाँ, जीवन रहीं उलीच।
डोल गले में डालकर, डोले रहट-दधीच।।

फुनगी तक सूरज बढ़ा, गरमाये तरू-पात।
दोपहरी ले आ गयी, चना-चबैना-भात।।

नयी वधू-सी संकुचित, नरम रेशमी धूप।
छुईमुई-सा तन मिला, कर्पूरी मन-रूप।।

- राकेश त्रिपाठी

   

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