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दीपावली महोत्सव
२००४

दिये जलाओ
संकलन

अब दीवाली

 

अब नहीं बनाती माँ मिठाई दीवाली पर
हम सब भाई बहन खूब रगड़ रगड़ कर पूरा घर आँगन नहीं चमकाते
अब बड़े भाई दिन रात लग कर नहीं बनाते
बाँस की खपचियों और पन्नीदार कागजों से रंग बिरंगा कंदील
और हम भाग भाग कर घर के हर कोने अंतरे में
पानी में अच्छी तरह से भिगो कर रखे गए दीप नहीं जलाते
पूरा घर नहीं सजाते अपने अपने तरीके से।

अब बच्चे नहीं रोते पटाखों और फुलझड़ियों के लिए
ज़िद नहीं करते नए कपड़े दिलाने के लिए और न ही
दीवाली की छुट्टियों का बेसब्री से इंतजार करते हैं।

हम देर रात तक बाज़ार की रौनक देखने अब नहीं निकलते और न ही
मिट्टी की रंग बिरंगी लक्ष्मी‚ अैनर दूसरी चीजें लाते हैं
दीवाली पर लगने वाले बाजार से

अब हम नहीं लाते खील बताशे‚ देवी देवताओं के चमकीले कैलेंडर
और आले में रखने के लिए बड़े पेट वाला मिट.टी का कोई माधो।
अब हम दीवाली पर ढेर सारे कार्ड नहीं भेजते
आते भी नहीं कहीं से
कार्ड या मिलने जुलने वाले।

सब कुछ बदल गया है इस बीच
माँ बेहद बूढ़ी हो गई है।
उससे मेहनत के काम नहीं हो पाते
वह तो बेचारी अपने गठिया की वजह से
पालथी मार कर बैठ भी नहीं पाती
कई बरस से वह जमीन पर पसर कर नहीं बैठी है।
नहीं गाए हैं उसने त्यौहारों के गीत।

और फिर वहाँ है ही कौन
किसके लिए बनाए
ये सब खाने के लिए
अकेले बुड्ढे बुढ़िया के पाव भर मिठाई काफी।
कोइ भी दे जाता है।
वैसे भी अब कहाँ पचती है इतनी सी भी मिठाई
जब खुशी और बच्चे साथ न हों . . .

बड़े भाई भी अब बूढ़े होने की दहलीज पर हैं।
कौन करे ये सब झंझट
बच्चे ले आते हैं चाइनीज लड़ियाँ सस्ते में
और पूरा घर जग जग करने लगता है।

अब कोई भी मिट्टी के खिलौने नहीं खेलता
मिलते भी नहीं है शायद कहीं
देवी देवता भी अब चांदी और सोने के हो गए हैं।
या बहुत हुआ तो कागज की लुगदी के।

अब घर की दीवारों पर कैलेंडर लगाने की जगह नहीं बची है
वहाँ हुसैन‚ सूजा और सतीश गुजराल आ गए हैं
या फिर शाहरूख खान या ऐश्वर्या राय और ब्रिटनी स्पीयर्स
पापा . . .छी आप भी . . .
आज कल ये कैलेंडर घरों में कौन लगाता है
हम झोपड़पट्टी वाले थोड़े हैं
ये सब कबाड़ अब यहाँ नहीं चलेगा।

अब खील बताशे सिर्फ बाजार में देख लिए जाते हैं
लाए नहीं जाते
गिफ्ट पैक ड्राइ फ्रूट्स के चलते भला
और क्या लेना देना।

नहीं बनाई जाती घर में अब दस तरह की मिठाइयाँ
बहुत हुआ तो ब्रजवासी के यहाँ से कुछ मिठाइयाँ मंगा लेंगे
होम डिलीवरी है उनकी।

कागजी सजावट के दिन लद गए
चलो चलते हैं सब किसी मॉल में‚
नया खुला है अमेरिकन डॉलर स्टोर
ले आते हैं कुछ चाइनीज आइटम

वहीं वापसी में मैकडोनाल्ड में कुछ खा लेंगे।
कौन बनाए इतनी शॉपिंग के बाद घर में खाना।

मैं देखता हूँ
मेरे बच्चे अजीब तरह से दीवाली मनाते हैं।
एसएमएस भेज कर विश करते हैं
हर त्यौहार के लिए पहले से बने बनाए
वही ईमेल कार्ड
पूरी दुनिया में सबके बीच
फारवर्ड होते रहते हैं।

अब नहीं आते नाते रिश्तेदार दीपावली की बधाई देने
अलबत्ता डाकिया‚ कूरियरवाला‚ माली‚ वाचमैन और दूसरे सब
जरूर आते हैं विश करने . . .नहीं . . .दीवाली की बख्शीश के लिए
और काम वाली बाई बोनस के लिए।

एक अजीब बात हो गई है
हमें पूजा की आरती याद ही नहीं आती।
कैसेट रखा है एक
हर पूजा के लिए उसमें ढेर सारी आरतियाँ हैं।

अब कोई उमंग नहीं उठती दीवाली के लिए
रंग बिरंगी जलती बुझती रौशनियाँ आँखों में चुभती हैं
पटाखों का कानफोड़ू शोर देर तक सोने नहीं देता
आँखों में जलन सी मची रहती है।
कहीं जाने का मन नहीं होता‚ ट्रैफिक इतना कि बस . . .

अब तो यही मन करता है
दीवाली हो या नए साल का आगमन
इस बार भी छुट्टियों पर कहीं दूर निकल जाएँ
अंडमान या पाटनी कोट की तरफ
इस सब गहमागहमी से दूर।

कई बार सोेचते भी हैं
चलो माँ पिता की तरफ ही हो आएँ
लेकिन ट्रेनों की हालत देख कर रूह काँप उठती है
और हर बार टल जाता है घर की तरफ
इस दीपावली पर भी जाना।

फोन पर ही हाल चाल पूछ लिए जाते हैं और
शुरू हो जाती है पैकिंग
गोवा की ऑल इन्क्लूसिव
ट्रिप के लिए।

—सूरज प्रकाश

रावण बनाम महा रावण

रावण के पुतले ने
दशहरे के दिन
पूरे देश में
जलने से मना कर दिया।
नेताजी, जलते हुए तीर पर तीर
चला रहे हैं, पर
रावण है कि जलता ही नहीं।
एक शिष्ट मंडल भेजा गया।
भाईॐ जल जाओ,
हमारी इज्जत का सवाल है।
वैसे क्या फर्क पड़ता है,
कल से तो तुम फिर
जनता के बीच होंगे।
हर तरफ तो लंका राज्य है,
जहाँ बस रावण ही रावण
राज्य करते हैं।
तुम्हें तो केवल
नाम के लिए मरना है,
एक प्रतीक स्वरूप वरना
न तुम कभी मरे थे, और
न कभी मरोगे।
भाईॐ अब बस कृपा करो,
जल्दी से मर जाओ।
रावण दुखी हो गया और बोला,
मुझे जलने में कोई
दिक्कत या परेशानी नहीं।
बल्कि मैं तो हर वर्ष
एक छोटे बच्चे के हाथ ही
मर जाता था, जो कि
राम का रूप धर कर आता था।
लेकिन आज यह क्या हो गया,
मुझे उससे मरने को कह रहे हो,
जो करोड़ो के घोटाले में
फँसा है,
जघन्य हत्या, मारपीट और
बलात्कार का आरोपी है।
यदि केवल एक सीता को लाकर
सम्मान पूर्वक लंका में रखने से
मैं रावण बन गया तो
ये सब तो
महा महा महारावण है
इनके हाथों मरने से तो
चुल्लू भर पानी में नाक डुबोकर
मर जाना बेहतर समझता हूँ।
जाओ लौट जाओ,
नहीं मरना है मुझे
इन महारावणों के हाथों।
यदि मारना है मुझे
प्रतीक स्वरूप तो
एक निष्पाप दुधमुँहे बच्चे को भी
भेज दोगे तो मैं
खुशी खुशी मर जाऊँगा, लेकिन
शाम भर या रात भर
तीर चलाओगे, तो भी
मैं इन महारावणों से
नहीं मरूँगा।

—सत्येश भंडारी

कैसी हो दीवाली

आई फिर दीवाली है‚
पर अपने घर बदहाली है।
कहते लक्ष्मी उस घर जाती,
हो प्रकाश से जगमग जो घर,
अपनी छोटी सी कुटिया में,
अंधकार है बाहर भीतर।
दीप जलाना खेल नहीं है,
खाने को ही तेल नहीं है।
फुलझड़ियाँ अनार जब चलते,
हम जैसों के तब दिल जलते।
उस प्रकाश को देख रहे है,
बच्चे ललचाई नज़रों से,
दिनकर जैसा फैल रहा है,
ऊँचे ऊँचे सभी घरों से।
अच्छे कपड़े हम क्या जाने,
बचुआ की कमीज़ है जर्जर,
वर्षों से ही पहन रही है,
मुनिया उस फ्राक पर निर्भर।
खुला सामने वाला गेट,
अब तो छूटेंगे राकेट,
सड़कों पर अब बम चलेंगे,
सब लोगों के दिल दहलेंगे।
शोर मचेगा उस मकान में
धुआँ धुआँ ही आसमान में।
अपने महिने भर की कमाई,
उसने इक पल में ही गंवाई।
खाते बस हम रोटी, प्याज,
कर्ज. बढ़ रहा, बढ़ता ब्याज।
अपने घर में कभी न आई,
पता नहीं क्या चीज़ मिठाई।
इक दिन वो दीवाली आए,
लक्ष्मी उस घर भी जाए,
जिसमें अंधकार हो छाया,
जहाँ उजाला कभी न आया,
हम भी चीज़ों को न तरसें,
सुख बरसे और खुशियाँ बरसें।
हर घर में आनन्द समाए,
कुछ अभाव घर में न आए।
उस दिन सच्ची दीवाली हो‚
जब हर घर में खुशहाली हो।

—शरद तैलंग

झूठी दिवाली

जहाँ लोगों के दिल
मुहब्बत से खाली
जहाँ दुनिया
रहमोकरम की सवाली
जहाँ पैसे वाले
गरीबों को देते
भर कर पटाखों में
कस करके गाली
दिवाली ये वो
पहलेवाली नहीं है
धमाकों में सहमी
हुई है दिवाली
ये झूठी दिवाली
ये झूठी दिवाली

—कुमार आशीष

    

 

 

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