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        उत्सव मनाते

 
हर्ष से होकर प्रफुल्लित
मस्त मन उत्सव मनाते

खूब हरियाली लिए हैं छोर सारे इस धरा के
पुष्प सतरंगी अनेकों खिल उठे हैं मुस्कुरा के
रूप सज्जा हर तरफ की
देखते ना मन अघाते

चैत्र का पावन महीना उत्सवों की शृंखला ले
आ गया घर द्वार सबके एक मधुरिम सुर नया ले
स्नेह पूरित हर हृदय में
शब्द खुद ही गुनगुनाते

प्रतिपदा शुभ शुक्ल की है चैत्र का पावन सुअवसर
विक्रमी संवत पुरातन आ गया नव ओज भरकर
राम का करते स्मरण हम
जन्मदिन उनका मनाते

स्थान भाषा भिन्न लेकिन एक्य के सम भाव लेकर
स्नेह श्रद्धा भक्ति के रस का छलक उठता समुंदर
पर्व के मृदु गीत मंगल
धूम जनपद में मचाते

- सुरेन्द्रपाल वैद्य
१ अप्रैल २०२१

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