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अच्छी लगीं
 
दूर के रिश्ते औ’ रिश्तेदारियाँ अच्छी लगीं
बढ़ गईं जब दूरियाँ, नज़दीकियाँ अच्छी लगीं

भर गिलासी छाछ मट्ठे की गटकने जब लगे
प्यार से लबरेज़, माँ की झिड़कियाँ अच्छी लगीं

चाय काफ़ी से उचटता जा रहा हो मन भले
बर्फ़ के गोले, पिघलती क़ुल्फ़ियाँ अच्छी लगीं

कर लिया जलपान सबने, मन रहा है जश्न अब
तर गले से गीत गातीं गौरियाँ अच्छी लगीं

तप रहे मौसम में सबका हाल है बेहाल पर
आमरस की ठंडी-ठंडी चुस्कियाँ अच्छी लगीं

घोल ली ठंडाई में कुछ भाँग तब जाकर कहीं
मस्तियाँ अच्छी लगी. कुछ ग़लतियाँ अच्छी लगीं

खर्च तो निकला नहीं घर का कभी कहकर ग़ज़ल
पर मेरे शेरों को मिलती सुर्ख़ियाँ अच्छी लगीं

- विनीता तिवारी 
१ जून २०२४

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