भली पकौड़ी

 
  सर्दी या बरसात झमाझम, पकौड़ियों का स्वाद नहीं कम
हरी मिर्च की तली पकौड़ी, लगती सबको
भली पकौड़ी

मौसम के झटके पर झटके घर से लोग न जाते हटके
दुबके रहते ओढ़ रजाई बिछा लिया बिस्तर बेखटके
छोड़ छाड़ दी भागा- दौड़ी
लगती सबको भली पकौड़ी

जाड़ा अगर कँपाए थर - थर बारिश जब हो जाए झर झर
बंद रहे सब आना - जाना होती है फरमाइश दिन भर
चाय संग हो जाय मुँगौड़ी
लगती सबको भली पकौड़ी

काम काज का छोड़ा चक्कर, सोये पकड़ बिस्तरा छककर
आ न सकेंगे, दे दें छुट्टी बीमारी की अर्जी लिखकर
किया बहाना ढूँढ़ी कौड़ी
लगती सबको भली पकौड़ी

दिल्ली ,अलवर या अल्मोड़ा, सभी जगह ठंडक का कोड़ा
नरमी या गरमी के दिन हों गरम पकौड़ा जाय न छोड़ा
हो कशमीर याकि फिर पौड़ी
लगती सबको भली पकौड़ी

---- विश्वम्भर शुक्ल
१ जुलाई २०२४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter