बने पकौड़े गरम गरम

 
  घुमड़-घुमड़ कर घिरी घटाएँ
बिजली चमकी चम चम चम
झम झम झम झम बरसी बूँदें
बने पकौड़े गरम-गरम

सनन सनन कर चली हवाएँ
सर सर सर सर डोले पात
भीगी माटी सौंधी महकी
पुलकित हुआ अवनि का गात
राहत मिली निदाघ से अब तो
हुआ सुहाना ये मौसम
झम झम झम झम बरसी बूँदें
बने पकौड़े गरम-गरम

अदरक वाली कड़क चाय की
फरमाइश करते दादा
दादी बोली मेरी चाय में
मीठा हो थोड़ा ज्यादा !
बच्चों को मीठे-मीठे
गुलगुले चाहिए नरम नरम
झम झम झम झम बरसी बूँदें
बने पकौड़े गरम-गरम

खट्टी मीठी और चटपटी
चटनी डाली थाली में
बच्चों को शरबत बाँटा और
चाय बँटी फिर प्याली में
बारिश की बोछारों के संग
ओले बरसे ठम ठम ठम
झम झम झम झम बरसी बूँदें
बने पकौड़े गरम-गरम

- सुधा देवरानी
१ जुलाई २०२४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter