गरम पकौड़े

 
  आज बनेंगे गरम पकौड़े चार बजे
घर आना जी

ऊब उदासी छोड़ कली से चटक फूल से खिले नहीं
अरसा हुआ शहर में रहते हम सब कब से मिले नहीं
यादों की बारातें लेकर महफिल में
छा जाना जी

भागम भाग लगी जीवन में दो पल कहीं सुकून मिले
इसके बाद चलेंगे मूवी वह जो कल ही हुई रिले
पास यहीं पर नदिया बहती चलकर
वहाँ नहाना जी

भोला भाला कालू अपना हीरे का व्यापारी है
था किताब का कीड़ा मोहन कहीं बड़ा अधिकारी है
मिलकर याद करेंगे फिर से
गुजरा हुआ जमाना जी

मोटी रानी चश्में वाली अब भी बहुत तुनकती है
झेला करती मार समय की मन को बहुत धुनकती है
थोड़ा धीरज उस पगली को मिककर
हमें बँधाना जी

पचपन में हम बचपन वाले दिन लौटाने वाले है
पहले भी हम लोग अलग थे अब भी बड़े निराले हैं
मिलकर साथ करेंगे भोजन रात
यहीं सो जाना जी

- मनोज जैन मधुर
१ जुलाई २०२४

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