साथ पकौड़े चाय

 
  छोड़ो ना लेपटॉप कि अब तो
बहुत हो चुका काम
आओ हम-तुम साथ बितायें
ये प्यारी सी शाम

कंप्यूटर के ग्राफ छोड़
जी लो स्पंदन ग्राफ
मेरे चेहरे को भी पढ़ लो
मेरे बेटर हाफ
अपनी बोझिल सी आँखों को
दो थोड़ा आराम

रिमझिम बारिश का मौसम है
साथ पकौड़े-चाय
मौसम भी रचने को आतुर
कुछ प्रेमिल पर्याय
कुछ पल जी लें आओ
बनकर हम-तुम राधा-श्याम

अगली-पिछली दुहरायेंगे
आओ मन की बात
इक-दूजे को सौंपेंगे
मुस्कानों की सौगात
वरना रेशा-रेशा जीवन
होता रोज़ तमाम

- गरिमा सक्सेना
१ जुलाई २०२४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter