अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

वन शिरीष मुसकाये
 

सूरज अगन लगाये
वन-शिरीष मुसकाये

हरे-हरे पत्तों में खिलता
पवन झकोरों के सँग हिलता
बाग बहुत हरषाये

कुदरत रूप-रंग मनहारी
सँग शिरीष की शोभा न्यारी
मन की सुध बिसराए

अम्बर जब बरसे अंगारे
खिलते पुष्प लगें ज्यों तारे
हिम-दल बलि-बलि जाये

तरल हिमानी झरने गमकें
तरु शिरीष की कलियाँ छमकें
सूरज सँग बतियाये

- कल्पना मनोरमा
१५ जून २०
१६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter