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महके फूल शिरीष के
 
तपे-तपे से दिन हैं सारे
और तपी सी रातें
ऐसे में लगते मनभावन
महके फूल शिरीष के

बौराई हैं लू की लपटें
गर्मी घोर कटीली
आँगन लाँघ आ गईं भीतर
किरणें बहुत हठीली

मनवा शीतल करें रैन-दिन
हँसके फूल शिरीष के

पीले-हरे गुलों से लक़दक़
पेड़ इस तरह झूमें
कोमल रेशम-धागों वाले
फुन्दने जैसे घूमें

बिछा धरा पर पीले जाजम
लहके फूल शिरीष के

बन कर ज्यों अवधूत खड़ा है
करने स्वागत पावस का
छाया देकर भला कर रहा
जेठ-धूप में मानस का

महक लिए भीनी सी मादक
चहके फूल शिरीष के

- आभा खरे

१५ जून २०
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