वृक्ष अपने पत्र तज कर
रूठ कर बैठे हों हट कर
लीन हों अपनी लगन में
जैसे सजनी
पी की धुन में
तुम कहो तो कौन आया?
सड़क पर रंगों का मेला
चुस्कियों
कुलफी का रेला
हैं बहारें शर्बतों की
कर दे शीतल
मन व काया
तुम कहो तो कौन आया?
रेत में गहरे छुपे हैं
कुछ रसीले
हरे पीले
लाल रक्तिम
हृदय गीले
तुम कहो तो कौन आया?
बेर ज़ामुन और ककड़ी
पेड़ की भाती हो छाया
आर्द्रता अपने हृदय की
ले उड़े जब शुष्क वायु
मैं बताऊॅ कौन आया
ग्रीष्म आया! ग्रीष्म आया!
— विजय ठाकुर
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