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                    १- अभी अभी
 पत्तियों को छूकर
 गुजर गी है हवा
 वे देर तक सिहरती रहेंगी!
 
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                    मदन मोहन पांडेकी पाँच क्षणिकाएँ
 प्रेम
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                    २-बहुत समय से
 नहीं चली हवा
 तप्त दोपहर के बीच
 पत्तियाँ इंतजार में हैं!
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                      ३- अपनी सुगंध में कैद
 एक फूल
 एक दिन झर गया शाख से
 तितलियों के पास
 उसकी खबर नहीं थी!
 
 | ४- मैं जब प्रेम में रहा
 उसके लिए शब्द नहीं सूझे
 अब हजारों शब्दों से घिरा हूँ
 प्रेम नहीं है मेरे पास!
 
 | ५- एक दूसरे से
 इतनी बार, इतनी बातें
 की थीं हमने
 कि हमारे बीच एक पुल बन गया
 लेकिन प्रेम
 उसके ऊपर होकर नहीं गुजरा
 गो कि एक नदी
 उस पुल के नीचे
 हरहराती रही बरसों!
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