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अमीरी

रुपए-पैसे से
जो अमीरी मिलती है
वो मुझको नहीं मिली...
पर एक और अमीरी मिल गई
जो रुपए-पैसे की अमीरी से भी
अमीर है
कविता-कविता
अमृता के साथ की
अमीरी...!!!

इमरोज़ की क्षणिकाएँ


महक

मनचाहे की एक महक
होती है
जिसके साथ
घर, ज़िंदगी
महकी-महकी
रहती है...

अनचाहे की
कोई महक नहीं होती...


सभ्यता

इतिहास कहता है
कि सभ्यता से पहले
बंदा जंगली था, वहशी था
पर
१९४७ कह रहा है
कि सभ्यता के बाद भी
बंदा जंगली भी है
और वहशी भी...


रंग

काले रंग को
कभी भी कोई रंग
नहीं रंगता...

काली सोच को भी
ज़िंदगी का कोई रंग
नहीं रंगता...


ज़िंदगी

जीने लगो
तो करना
फूल ज़िंदगी के हवाले
जाने लगो
तो करना
बीज धरती के हवाले...


तेरा भला करे

अमृता जब भी खुश होती-
मेरी छोटी-छोटी बातों पर
तो वो कहती-
वे रब तेरा भला करे।

और मैं जवाब में कहता हूँ-
मेरा भला तो
कर भी दिया रब ने
तेरी सूरत में
आकर...

१२ अक्तूबर २००९


हमउम्र

ज़िंदगी खेलती है
पर हमउम्रों से...
कविता खेलती है
बराबर के शब्दों से, ख़यालों से
पर अर्थ खेल नहीं बनते
ज़िंदगी बन जाते हैं...
रात-दिन रिश्ते भी खेलते हैं
सिर्फ़ मनचाहों से
उम्रें कोई भी हों
ज़िंदगी में मनचाहे रिश्ते
अपने आप हमउम्र हो जाते हैं...

 

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