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सात विभिन्न भाषाओं के प्रतिष्ठित कवियों की देशभक्ति रचनाएँ-
बंधु हमारा साथ निभाओ
(उड़िया)

शत्रु अभी न गया पलटकर
युद्ध अभी जारी है डटकर
बंधु, हमारा साथ निभाओ
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर से
सूर्य करे आह्वान-अब आओ
डरो नहीं, अब समय आ गया
समय आ गया
कुछ करने पर

युद्ध-विद्या का विष फैला जो
नहीं हटा सूरज-मंडल से
प्रकृति सुघड़ रानी की अनुपम
रूप राशि के प्रभामंडल से
भरा नहीं है विश्व कभी तक
रस से तरकर

भारत के नव उदित मंत्र से
वशीभूत शिव तांडव करते
ले हाथों क्षत-विक्षत-भस्म शव
हाहाकार मचा, रव भरते
वहाँ मनुज की आज़ादी की
गंगा का अवरोहण होता
प्रकृति और मन दोनों करते
मानव की बलबाहु परीक्षा
अस्त्र परस्पर छीन-छीन कर
रोके कौन प्रचंड बेगतर
बीतेंगे युग और युगांतर

पूजक! देवी के चरणों में
रक्त चढ़ाओ, करो याचना
युवाओं बन मृत्यु मृत्यु की
कुचलो उसको करो सामना
देवताओं से दिव्य बनो वर
जाग-जागकर

कृषक और मजदूरों आओ
जल छिड़को, बरसाओ फूल
और बचाओ जीवन उनका
विश्व बनेगा स्वर्ग समूल
कलियुग वापस लौटे थककर
त्याग देखकर।

--बीर किशोर दास
--अनुवादः अतुल कुमार रस्तोगी

 

पाँचजन्य
(कन्नड़)

आगे बढ़ो! आगे बढ़ो
हो अग्रसर आगे बढ़ो
रुकना नहीं, थकना नहीं
उत्फुल्ल हो आगे बढ़ो

भय त्याग, उर-मंदिर-निडर
कर आस्था स्थापना
कर ध्वस्त कारा, अरि-दलन
हो खाक, फिर ले साँस ना

मिट जाऊँ मैं या तुम मिटो
इन अस्थियों पर भी मगर
विश्वास है होगा खड़ा
नव भव्य भारत उभरकर

यह आत्मा अक्षय कला
बन जाएगी जन-शृंखला
यह मृत्यु नश्वर बना दो
भारत सुगौरव, घोषणा

आगे बढ़ो! आगे बढ़ो
हो अग्रसर आगे बढ़ो
रुकना नहीं, थकना नहीं
उत्फुल्ल हो आगे बढ़ो!

--के. वी. पुट्टप्पा
--अनुवादः अतुल कुमार रस्तोगी

 

क्रांति का गरजा जय-जयकार
(मराठी)

गरजा जय-जयकार क्रांति का गरजा जय-जयकार
अपने सीने पर झेलेंगे हम हर वज्र-प्रहार
बजने दो हाथों-पाँवों में लोहे की जंजीर
मृत्यु-द्वार पर खड़े आज हम, लेकिन नहीं अधीर
नाग-पाश चाहे जितना भी जकड़े चारों ओर
छिन्न-बाहु हम, किंतु ह्रदय में बल अपने पुरज़ोर
एक तड़ित से उजड़ा है क्या तारों का संसार
गरजा जय-जयकार क्रांति का गरजा जय-जयकार
हथकड़ियों में जकड़ गए हैं हाथ-ध्वजा फहराते
कारागृह में पड़े आज जो गात फतह के गाते
बलि-वेदी पर चढ़ने की जो हिम्मत हैं दिखलाते
उन्हे लोग अपराधी कहते, दीवाना बतलाते
मातृभूमि हम क्लांत सुतों को दे आँचल का प्यार
गरजा जय-जयकार क्रांति का गरजा जय-जयकार
माँ मत अश्रु बहाना दुःख की कट जाएगी रात
उज्जवल है भविष्य हमारा, होगा शीघ्र प्रभात
आज चिता पर जल जाने दो यह काया बेजान
क्रांति-पुरुष उपजेंगे इससे कोटि-कोटि बलवान
हे माँ, उनके पौरुष से होगा तेरा उद्धार
गरजा जय-जयकार क्रांति का गरजा जय-जयकार

--वी.वी. शिरवाडकर 'कुसुमाग्रज'
--अनुवादः डॉ.रामवृक्ष सिंह

 

वंदे मातरम (तमिल)

आओ गायें वंदे मातरम
आओ पूजे भारतमात हम
हमें नहीं परवाह जाति औ' धर्म की
ब्राह्मण हों, हो कोई छाया वर्ण की
इसके हैं सतवीर सपूत महानतम
क्योंकि पुण्य भूमि की इस संतान जन
एका है बल, त्याग इसे हम, गैर की
दृष्टि बनें आधारहीन हम नारकी
कोशिश कर यह सत्य समझ लें हम सब जन
नहीं चाहिए फिर तो कोई ज्ञान और धन
कुछ होगा गर हमें, सभी का भाग्य वही
क्या होगा गर अपनी होगी दिशा सही
जी जाएँगे तीस करोड़ जन गर जीते हम
मिटे अगर तो सबके मिटने का हो गम।

--सुब्रमण्य भारती
--अनुवादः अतुल कुमार रस्तोगी

  नहीं चाहिए हमें फिरंगी राज
(तेलगु)

नहीं चाहिए हमें फिरंगी राज- हे भगवान
नहीं चाहिए हमें फिरंगी राज
जिसने किया हमारे जीवन पर आघात
और लिया है लूट हमारे स्वाभिमान का ताज
नहीं चाहिए हमें फिरंगी राज

यहाँ भूमि उपजाती रहती फसलों के बहुढेर
खाने को पर हमें न मिलता हात, एक भी कौर
छूना है अपराध नमक भी कहिए क्या अब और
मुँह में झोंक हमारे मिट्टी आप चला जाता निज ठौर
रोटी के टुकड़ों की खातिर देखो,
क्या हालत है
खाने को लड़ते कुत्तों से विवश और मोहताज
नहीं चाहिए, हमें फिरंगी राज
उसने विधि का तंत्र बनाया रचे कई हैं व्यूह
ध्येय किंतु है नष्ट करो केवल साहचर्य-समूह
जाग्रह कर लालच बुराई से कुत्सित भाव भयावह
उसने दी है हमें क्षुधा, चिररूदन दबी-आवाज़
नहीं चाहिए, हमें फिरंगी राज

कारागृह के द्वार खड़ी है आज़ादी की दुल्हन
रंगबिरंगे फूल हाथ ले इंतज़ार में रत मन
स्वागत सिर्फ़ तुम्हारा करने खुशियाँ भरने आँगन
चलो जेल में सीधे, टूटे निंद्य मर्त्य यह राज
नहीं चाहिए, हमें फिरंगी राज।

--गरिमेल्ला सत्यानारायण
--अनुवादः अतुल कुमार रस्तोगी

 

 

चलो अकेले रे!
(बांग्ला)

गर पुकार सुन कोई न आए
तब भी चलो अकेले रे
चलो अकेले! चलो अकेले! चलो अकेले
चलो अकेले रे

गर कोई भी करे न बातें
सुन ओ अरे अभागे
गर सब तुमसे मुख फेरे
हों कायर, भय जागे
लगा प्राण की बाजी तब तू
मुखर बनो, अपनी मन-कथा
कहो अकेले रे

यदि सारे फिर जाएँ तुमसे
सुन ओ अरे अभागे
जाते समय सघन पथ तुझको
कोई न मुड़के देखे
तब पथ के काँटों को अपने
रक्त सने चरणों के नीचे
दलो अकेले रे

गर ना हो आलोक कहीं भी
सुन ओ अरे अभागे
यदि अंधियारी रातों में
झंझावत का यम जागे
दरवाज़े हों बंद, जले वज्रानल तब तुम
अपना सीना-पंजर बालो
जलो अकेले रे!

--रवींद्रनाथ टैगोर
--अनुवादः अतुल कुमार रस्तोगी

कदम-कदम बढ़ाए जा

कदम कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाये जा
यह ज़िंदगी है कौम की तू कौम पे लुटाए जा
तू शेरे हिंद आगे बढ़
मरने से कभी तू न डर
उड़ा दुश्मनों का सर जोशे वतन बढ़ाए जा
कदम कदम...

तेरी हिम्मत सदा बढ़ती रहे
खुदा तेरी सुनता रहे
जो सामने तेरे अड़े उसे तू ख़ाक में मिलाए जा
कदम कदम...

चलो दिल्ली पुकार के
कौमी निशां सँभाल के
लाल किले पे गाड़ के लहराए जा लहराए जा
कदम कदम...

११ अगस्त २००८

 

पगड़ी सँभाल रे! (पंजाबी)

पगड़ी सँभाल भैया, पगड़ी सँभाल रे
ये हैं भारत मंदिर अपना, हम इसके पुजारी रे
झेलेगा तू कब तक बोल, दुत्कार दुधारी रे
अपनी माटी पर मरने को, कर ले तू तैयारी रे
मौत भली इस जीवन से तो
अब मत हो बेहाल रे
गोरे जुल्मी शासक सारे, जब चिंता न करें हमारी
तब क्यों कर परवाह करें हम, सारे उनके हित की बारी
आओ हम सब मिल हुँकारे, ललकारे अरि सेना सारी
एक साथ गर मिलकर बाजें
ताली का स्वर-ताल रे
हरी-भरी फसलों को सारी, आह! लग गये कीड़े
वस्त्र नष्ट सब हुए हमारे, तन पर बाकी चिथड़े
बिलख हमारे बच्चे रोएँ, भूखे, नंगे, उघड़े
भूख, प्यास से हो निढाल हम
हुए शुष्क कंकाल रे
खान बहादुर बने हुए हैं, पिछलग्गू अंगरेज़ों के
वेश बनाए घूम रहे हैं, देशभक्त नेताओं के
बहकाते-फुसलाते हमको, धूर्त, कुटिल नित चालों से
तुम्हें फँसाने खातिर देखो
फैलाया है जाल रे
तड़प-तड़प अत्याचारों से, काया भी कुम्हलाई
जागो, उठो, सँभलो देखो, सावधान हो भाई
साहस से लड़कर जीतेंगे, खतरों भरी लड़ाई
काँटों भरी राह अंधियारी
चहूँ-दिश है जंजाल रे।

लाला बांके दयाल
अनुवादः अतुल कुमार रस्तोगी

११ अगस्त २००८

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