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                  भगवती चरण वर्मा 
                  (१९०३-१९८१ ई.) 
                   
                  भगवतीचरण वर्मा संघर्षमय 
                  परिस्थितियों में इलाहाबाद में शिक्षा प्राप्त करके वकील बने, 
                  किंतु तीन वर्ष बाद ही उसे छोड़कर साहित्य सर्जना के प्रति 
                  पूर्णत: समर्पित हो गए। इन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन 
                  किया। इनके काव्य संग्रह हैं- `मधु-कण', `प्रेम-संगीत' तथा 
                  `मानव'। इनकी कविता में मस्ती और फक्कड़पन है। `चित्रलेखा' तथा 
                  `भूले बिसरे चित्र' इनके बहुचर्चित उपन्यास हैं। ये साहित्य 
                  अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुए।  | 
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                  स्मृतिकण 
                   
                  क्या जाग रही होगी तुम भी?
                  निष्ठुर-सी आधी रात प्रिये! अपना 
                  यह व्यापक अंधकार, 
                  मेरे सूने-से मानस में, बरबस भर देतीं बार-बार 
                  मेरी पीड़ाएँ एक-एक, हैं बदल रहीं करवटें विकल 
                  किस आशंका की विसुध आह! इन सपनों को कर गई पार 
                  मैं बेचैनी में तड़प रहा;  
                  क्या जाग रही होगी तुम भी? 
                   
                  अपने सुख-दुख से पीड़ित जग, निश्चिंत पड़ा है शयित-शांत, 
                  मैं अपने सुख-दुख को तुममें, हूँ ढूँढ रहा विक्षिप्त-भ्रांत; 
                  यदि एक साँस बन उड़ सकता, यदि हो सकता वैसा अदृश्य 
                  यदि सुमुखि तुम्हारे सिरहाने, मैं आ सकता आकुल अशांत 
                  पर नहीं, बंधा सीमाओं से, मैं सिसक रहा हूँ मौन विवश; 
                  मैं पूछ रहा हूँ बस इतना-  
                  भर कर नयनों में सजल याद, 
                  क्या जाग रही होगी तुम भी?  |