| फूलों का नाम फूलों का तो नाम था, जीये होकर 
                  शूल।निष्कासित हो बाग से, जैसे पेड़ बबूल।।
 टेबल पर रक्खा हुआ, इक नदिया का 
                  सीप।जैसे जलता घाट पर, आशाओं का दीप।।
 करे प्रीत की साधना, मन हो महा 
                  मनीष।दोहे देते रात दिन, ऋषि होकर आशीष।।
 अंधियारों में खो गया, आज़ादी 
                  का बाग।धोया गया कलंक से, उजियारों का दाग।।
 उस मौसम की लिख रहा, अगवानी के 
                  गीत।सदा घोलती ज़िंदगी, जिसके स्वर में प्रीत।।
 बोले चंदन धूप जल, अक्षत रोली 
                  राग।धागे लेकर प्रीत के, मन के मोती ताग।।
 जिसका जिससे मन मिले, ले वो 
                  उसका रूप।सागर-सा आकाश है, तितली जैसी धूप।।
 सपने देखे प्यार के, दिल में है 
                  बारूद।अरमानों का आजकल, खंडित मिला वजूद।।
 आवभगत के नाम पर, चढ़ी केतली 
                  चाय।हुई सिमट कर जिंद़गी, हलो हाय गुडबॉय।।
 फूली सरसों पर लिखे, जब भी धूप 
                  निबंध।सोने में आकर मिले, जैसे कहीं सुगंध।।
 पककर बाली प्रीत की, हुई हरी से 
                  लाल।लगी धूप की गुदगुदी, फागुन करे कमाल।।
 ९ अक्तूबर २००६  |