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                  विजय तिवारी 'किसलय' 
                  के दोहे 
                    |  | माँ दुर्गा को 
                  समर्पित मैया पर विश्वास 
                  रख, कर्म करे जो नेक उनका आदर भाव से, जग करता अभिषेक
 
 अंबे माँ सुखदायनी, ममता का प्रतिरूप
 दिखें उन्हें सब एक से, आम, खास या भूप
 
 माँ की पूजा-भक्ति से, फलते सुफल अनेक
 बिन माँगे मिलते सदा, सन्मति, बुद्धि, विवेक
 
 पूरी करती कामना, हरती दुख-संताप
 माँ के पूजन-भजन का, जग में यही प्रताप
 
 माँ की पूजा-अर्चना, श्रद्धा से यश गान
 करे सुनिश्चित भक्त का, दुःख-दारिद्र्य निदान
 
 माँ दुर्गा के नौ दिवस, नित नव रूप अनूप
 पूजन सुख की छाँव दे, लगे न दुःख की धूप
 
 जिनके पावन नाम को, रखूँ सदा मैं याद ।
 ऐसी जग जननी मेरी, पूरी करे मुराद
 
 माँ" की महिमा का सदा, जो भी करे बखान
 जीवन में उसको मिले, खुशियों का वरदान
 
 भक्ति भाव रख जो करे, नमन, ध्यान, गुणगान
 उनकी सारी मुश्किलें, "माँ " करती आसान
 
 जो "अम्बे" की अर्चना, करे जोड़ द्वय हस्त
 त्रिविध ताप, त्रय लोक में, कर पाए ना त्रस्त
 
 "माँ" तेरा सुमिरन करुँ, नत मस्तक, कर जोड़
 भव वारिधि के बीच में, मुझे न देना छोड़
 
 मूर्ख, अकिंचन भक्त मैं, चरणों की हूँ धूल
 " अम्बे " शरण बुलाईये, विस्मृत कर हर भूल
 
                  ६ अप्रैल २००९ |