| मेरे दोहे उपनिषद मेरे दोहे उपनिषद मेरे दोहे वेदनामवरों को हो रहा सुनकर भारी खेद
 ओशो ने खुद को कहा पढ़ालिखा भगवानमैं हो गया प्रबुद्ध तो हर कोई हैरान
 तूने खुद को ही किया सदा नज़रंदाज़अब चलने का वक्त है अब तो आजा बाज़
 पछताएगा बाद में ले ले मेरा नामअभी निरंतर मैं करूँ झुक झुक तुझे सलाम
 तुमने अनदेखा किया मुझे बंधु हर रोजमैंने केवल इसलिए कहा स्वयं को खोज
 अपनी करतूतें अगर देने लगें सुकूनतो तुम समझो कर दिया तुमने खुद का खून
 मन टुकड़ों में बँटा जब तब तक मैं था खिन्नअब मन मिलकर एक है अब मैं हुआ अभिन्न
 मैं या मन दो चीज़ हैं इन्हें एक मत मानजब तू खुद चैतन्य है तब मन को मृत जान
 जिसने जाना स्वयं को उसका गया गुमानवह खोजे भगवान क्यों वह खुद है भगवान
 जो खुद अपने में मगन वो हो गया फकीरउसकी इस संसार में कोई नहीं लकीर
 जो कुछ भी मैंने किया वह था मेरा स्वार्थदुनिया ने इसको कहा पागलपन परमार्थ
 
                      ६ जुलाई २००९ |